
आज सम्पूर्ण विश्व ऐलोपैथीक दवाईयों के दुष्प्रभावों से ग्रस्त होकर औषधीय एवं सगंध पौधों की ओर तेजी से अग्रसर हो रहा है तथा प्रतिवर्ष पूरे विश्व में जड़ी बूटियों का व्यापार बढ़ता जा रहा है। यह जड़ी बूटियाॅ मुख्यतः वनों से प्राप्त होती है परन्तु बढ़ती हुई जनसंख्या के फलस्वरूप वनों का क्षेत्रफल निरंतर घटता जा रहा है जिसके फलस्वरूप जड़ी बूटियों के स्त्रोत कम हो रहे हैं तथा साथ ही जड़ी बूटियों की कई प्रजातिया जैसे सफेद मूसली इत्यादि विलुप्त हो रही है।
अतः इन उपरोक्त बातो को ध्यान में रखते हुए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (भारत सरकार) के अंतर्गत ’’औषधीय एवं सुगंधित पौध सुधार परियोजना की स्थापना राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय, ग्वालियर के अंतर्गत उद्यानिकी महाविद्यालय, मंदसौर में सन् 1978 में अफीम एंव अश्वगंधा फसल से शुरू किया गया आज इस परियोजना में उपोष्ण एवं उष्ण क्षेत्रों में उगाये जाने वाली औषधीय एवं सुगंधित फसलों जैसे अफीम, अश्वगंधा, ईसबगोल, कालमेघ सफेदमूसली, शतावर, एलोवेरा, तुलसी, एवं बेसिल के उपर अनुसंधान कार्य जैसे इन पौधों के जननद्रव्य एकत्र करना, नई किस्मों को विकसीत करना उनके उत्पादन तकनीक, पौध संरक्षण एवं गुणवत्ता के उपर अनुसंधान चल रहा है। वर्तमान में अफीम में 407 जननद्रव्य, अश्वगंधा 120, ईसबगोल 80, कालमेघ 12, सफेदमूसली 24, तुलसी 21, शतावर 02, एलोवेरा 05 जननद्रव्य उपलब्ध है। साथ ही औषधीय उद्यान में विभिन्न जड़ी बूटियों की 275 प्रजातिया संकलित है इन जनन द्रव्य के आधार पर मंदसौर केन्द्र ने विभिन्न औषधीय फसलों की किस्मों को विकसित किया जिसमें कुछ किस्मों को देश में पहली बार विकसित की गई जैसे अफीम में 03, अश्वगंधा में 03, ईसबगोल में 01, सफेदमूसली में 02 साथ ही साथ उपरोक्त किस्मों के उपर कई वर्षो के अनुसंधान के आधार पर औषधीय एवं सुगंधित पौधों के उत्पादन तकनीक, पौध संरक्षण, गुणवत्ता (कीमोटाईप) विकसीत की गई जो आज मध्यप्रदेश, विशेषकर मालवा क्षेत्र में मंदसौर एवं नीमच जिले के कृषकों द्वारा व्यवसायिक खेती के रूप में हजारों हेक्टर क्षेत्र में अपनाकर आर्थिक लाभ लिया जा रहा है।
औषधीय फसलों की व्यवसायिक खेती के लिए प्रचार प्रसार एवं जागरूकता फैलाने में विश्वविद्यालय प्रशासन, जिला प्रशासन एवं क्षेत्र के जनप्रतिनिधि का सहयोग निरंतर मिलता रहा, डाॅ.एच. पाटीदार, डाॅ. जी.एन. पाण्डेय, डाॅ. एस.एन.मिश्रा, डाॅ. आर.एस. चुण्डावत के टीम को जिसके फलस्वरूप मंदसौर सेन्टर के वैज्ञानिको भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने औषधीय एवं सुगंधित फसलों के उपर अनुसंधान एवं इसकी व्यावसायिक खेती में महत्वपूर्ण योगदान के लिए डाॅ. वाई. एस. परमार उद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, सोलन (हिमांचल प्रदेश) में विगत 28 सिंतबर से 1 अक्टूबर तक आयोजित कार्यशाला में मंदसौर सेन्टर को वर्ष 2015-16 का अखिल भारतीय स्तर पर मन्दसौर केन्द्र को सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार दिया औषधीय परियोजना के वैज्ञानिको को दिया गया। अनुसंधान कार्य कृषकों, गैर सरकारी संस्थानों, उघोगपतियो, छात्रों एवं स्वयंसेवी संस्थानों को औषधीय एवं सुगंधित फसलों की खेती एवं व्यवसाय करने के लिए उपयोगी है ।
कुलपति महोदय जिनकी प्रेरणा से ये उपलब्धि हासिल हुई है, उन्होंने वैज्ञानिकों को बधाई दी है। परियोजना के वैज्ञानिको ने विश्वविद्यालय प्रशासन, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद नई दिल्ली, निर्देशक एंव परियोजना समन्वयक बोरीआवी आनंद, गुजरात भी आभार व्यक्त किया है जिसके अंतर्गत औषधीय एवं सुगंधित पौध सुधार परियोजना, मंदसौर में कई वर्षो के अनुसंधान एवं प्रसार के योगदान को पहचान दी हैं ।