एकता एवं सद्भावना ही अपने देश की सच्ची शक्ति है। हमारे देश में अनेक संस्कृतिया है जो विविधता में एकता की विशेषता को प्रकट करती है। इसी प्रकार मन्दसौर में भी अनेक जाति व समप्रदाय के लोग एक साथ आपसी सामंजस्य के साथ निवास करते हुए एक दुसरे के धर्मों का आदर करते हैं। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है सामाजिक रैलियों का अनेक जगह पर सभी समप्रदाय के समाजों द्वारा भिन्न-भिन्न जगह स्वागत करना। इस स्वागत को प्रारम्भ करने का श्रैय सामाजिक समरसता मंच मन्दसौर को जाता है।
मन्दसौर जिले में हिन्दू, मुस्लिम, जैन सिक्ख व ईसाई धर्मावलम्बी प्रधान रूप से निवास करते हैं। सर्वाधिक जनसंख्या हिन्दुओं की है। मुसलमानों की जनसंख्या दूसरे स्थान पर है। अधिकांशत : सुन्नी मतावलम्बी है। जैन धर्मावलम्बियों का स्थान तीसरा है। सन् 1961 की जनगणना में जैनियों की संख्या 2.4 प्रतिशत थीं।
जिले की कुल जनसंख्या का 18.58 प्रतिशत भाग अनुसूचित जाति के लोगों का है। इनमें पुरूषों की संख्या 1,26,822 व स्त्रियों की संख्या 1,22,202 है। इस वर्ग के अधिकांश लोग गाँव में निवास करते हैं।
जिले में अनुसूचित जनजाति की कुल जनसंख्या 33,092 है। इनमें से 17,023 पुरूष व 16,069 स्त्रियाँ हैं ये अधिकांशत: ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करते हैं। सन् 1961 की जनगणना में इनकी संख्या जिले की आबादी की 1 प्रतिशत से भी कम थी। आज की स्थिति में 2.47 प्रतिशत है।
जिले में ब्राह्मणों की संख्या जिला मुख्यालय पर सर्वाधिक है। यह भी कहा जाता है कि इस नगर की स्थापना ब्राह्मणों ने की थी। मुस्लिम आक्रमणों के दौरान यहाँ इतने ब्राह्मणों का बलिदान हुआ कि सवा मन यज्ञोपवीतों का ढेर हो गया। दशपुर में निवास करने वाले ब्राह्मण ‘दशोरा’ कहलाते थे। ‘दशेरा’ ब्राह्मणों ने अपने महाविनाश के बाद इस नगर का अन्न-जल त्याग दिया था। सन् 5-11-1976 में इनकी यह प्रतिज्ञा एक सम्मेलन आयोजित कर तुड़वाई गई। जिलें में गुर्जर गौड़, चौबीसा, श्री गौड़, औदिच्य, नागदा, ओदुम्बर, मोड़, सारस्वत, सिखवाल, पालीवाल, पाराशर, कान्यकुब्ज, भार्गव आदि ब्राह्मणों की प्रधानता है।
वणिकों में सर्वाधिक जनसंख्या जैनियों की है। ये श्वेताम्बर व दिगम्बर सम्प्रदाय के अनुयायी हैं। इनके सिवाय पोरवाल, अग्रवाल व माहेशवरी वणिकों की भी प्रधानता है। ये मुख्यत: व्यापारी है व शहरों में निवास करते हैं।
जिले का अधिकांश भाग राजपुताने (राजस्थान) के मेवाड़ राज्य का अंग रहा है। इस कारण यहाँ चुण्डावत, राणावत, शक्तावत, देवड़ा, पंवार, राजपूतों की प्रधानता है। जिले में सितामऊ रियासत का पूर्णत: विलय हुआ। यह राठौड़ रियासत थी।
इनके अलावा खेती से जुड़ी अनेक जातियाँ जैसे पाटीदार, सौंधिया, गुर्जर, जाट, आंजना, डांगी, खाती, कुमावत, कुमरावत, आदि इस जिले के कृषि उत्पादन में लगी है। इन लोगों की मेहनत के कारण ही मन्दसौर कृषि उपज मण्डी का प्रदेश में नाम है।
जिले में बजारों के ग्राम, टाण्डे कहलाते है। ये बामणिया बंजारे कहलाते है। भारत में देह व्यापार से अनेक जातियाँ जुड़ी हैं। इनमें से बाछड़ा जाति मन्दसौर जिले में निवास करती है। ये प्रधानत: राष्ट्रीय राजमार्ग व इनसे लगे मुख्या मार्गों पर सड़क के दोनों ओर निवास करते है। अविभाजित मन्दसौर जिले में वर्ष 1981 में इनकी कुल आबादी 4332 (2047 पुरूष + 2285 महिलाएं) थी। वर्ष 1994 में स्वास्थ्य विभाग मन्दसौर द्वारा कराए सर्वेक्षण में 61 ग्रामों में 817 परिवार पाए गए। कुल आबादी 4198 (1963 पुरूष + 2295 महिलाएं) थी। सन् 2001 के आँकड़ों के अनुसार इसकी सर्वाधिक संख्या भानपुरा क्षेत्र में है। सबसे कम सीतामऊ तहसील में है। इस समुदाय में परिवार की लड़की को देह व्यापार के लिए बाध्य किया जाता है जिसे ‘खेलावड़ी’ कहा जाता है। जो व्यवसाय नहीं करती है उसे ‘भट्टेवाड़ी’ कहा जाता है। सीतामऊ व मन्दसौर में साठिया नामक जाति का निवास है। ये पशु व्यापार से जुड़े हैं। मन्दसौर जिला कंजर समस्या से ग्रस्त है, परंतु कंजरों के गाँव मन्दसौर जिले में नही हैं। कंजर चम्बल नदी के पार म.प्र. के रतलाम जिले में व राजस्थान के झालावाड़ जिले में निवास करते हैं।