मन्दसौर की प्रमुख नदियाँ, कछार एवं जल प्रपात
हमारा जिला चम्बल – बेतवा कछार का प्रमुख जिला है। उत्तर में यमुना नदी और दक्षिण में विंध्य पर्वत के बीच फैले इस कछार में 18 जिले हैं। इस कछार में प्रदेश के चार सबसे प्राचीन नगर महिष्मती, अवन्तिका, विदिशा व दशपुर (मन्दसौर) विद्यमान है।
विन्ध्य की श्रेणियाँ, नर्मदा – ताप्ती, चम्बल, बेतवा और गंगा कछार की जल विभाजक है। सम्पूर्ण मालवा के पठार का पानी बहकर चंबल और उसकी 10 सहायक नदियों (बड़ी व छोटी काली सिंध, कुँआरी, चामला, मलिनी, बनास, सिपरा, पार्वती, कूनो, शिवना) में एकत्र होकर यमुना में मिलता है। इस कछार में बहाव की 75% निर्भरता 15.40 लाख घन फुट वर्गमील है। यह आँकड़ा गाँधी सागर जलाशय पर किये गये सर्वेक्षण पर आधारित है।
जिले का धरातल पश्चिम-दक्षिण से उत्तर पूर्व की ओर झूका है। इस कारण जिले की अधिकांश नदियों का बहाव उत्तर-पूर्व की ओर है। चम्बल, शिवना, सूमली, गीड, अवना, सिपरा, छोटी कालीसिंध आदि नदियाँ उत्तर वाहिनी है। रेतम और रेवा पूर्व वाहिनी है। जिले की प्रमुख नदियों की सक्षिप्त जानकारी इस प्रकार है।
जल प्रपात का निर्माण ऊँचाई से पानी गिरने पर होता है। मन्दसौर जिले में जल प्रपातो की संख्या अधिक नहीं है।
चम्बल नदी –
चम्बल नदी पश्चिम मध्य प्रदेश की सबसे बड़ी और महत्वपूर्ण नदी है। महाभारत, भागवत, मार्कण्डेय, वायु, मत्स, कर्मपुराण में इस नदी का उल्लेख मिलता है। इस नदी के प्राचीन नाम पुण्या व कर्मण्यवती मिलते हैं। महाभारत में इसकी उत्पत्ति के सम्बन्ध में कहा गया है कि राजा रन्तिदेव द्वारा अतिथियों के सत्कार के लिये बलिदान की गयी गयों के चर्म रक्त से चर्मण्यवती का उद्गम हुआ। मेघदूत में कालिदास ने लिखा है कि ‘कामधेनु की पुत्री सुरभि की कृपा से चम्बल का उदय हुआ।’
भौगोलिक रूप से चम्बल, इन्दौर जिले की मऊ तहसील में विन्ध्याचल की जानापाव (जानापाई) पहाड़ी (854 मी.) से निकलती है। इसके उद्गम पर एक तालाब और जनकेश्वर मंदिर स्थित है। यह इन्दौर, उज्जैन और रतलाम जिलों में बहती हुई मन्दसौर जिले की दक्षिणी सीमा रेखा बनाती हुई, पारसीग्राम के पास से जिले में प्रवेश करती है। यह नदी जिले को दो भागों में विभाजित करती है। इसके पूर्वी किनारे पर हूण मण्डल स्थित था। वर्तमान में यह क्षेत्र सोंधवाड कहलाता है। इस क्षेत्र में पहुँचने के लिए ग्राम बसई (तहसील सुवासरा) के पास चम्बल नदी पर वर्ष 1988 में 110 मी. लम्बा पुल बनाया है।
जिले के उत्तर पूर्व में स्थित चम्बल घाटी में प्रागैतिहासिक शैलचित्र मिले है। इससे सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि पाषाण काल में यह क्षेत्र आदि मानव का आश्रय स्थल रहा होगा। आवरा, मनोटी, पसेवा आदि ताम्राश्मकालीन बस्तियाँ है। देश की आजादी के बाद डॉ. कैलाशनाथ काटजू (मुख्यमंत्री, म.प्र.) के प्रयासों से भारत की प्रथम विद्युत परियोजनान्तर्गत गांधीसागर बांध का निर्माण किया गया। बांध निर्माण के कारण यह नदी एक विशाल जलाशय में बदल गयी है। यह जलाशय गांधीसागर के नाम से जाना जाता है।
13.30 करोड़ की लागत से बने गांधीसागर बांध का शिलान्यास तत्कालीन प्रधानमंत्री पण्डित जवाहरलाल नेहरू ने दिनांक 7 मार्च 1954 को किया था। 63.3 मीटर ऊँचे व 513.6 मीटर लम्बे इस बांध का उद्घाटन भी पण्डित नेहरू ने श्रीमती इन्दिरा गांधी के जन्म दिवस पर 19 नवम्बर 1960 को अपने कर-कमलों से किया। इस बांध के निर्माण से जिले के 59 ग्राम पूर्ण रूप से 196 ग्राम आंशिक रूप से डूब में आये।
गांधी सागर जलाशय 26.1 कि.मी. चौड़ा 67.8 कि.मी. लम्बा है। इसकी अधिक गहराई 58.4 मीटर या 191.6 फीट है। विद्युत मण्डल गांधी सागर के अनुसार जब जलाशय का जल स्तर 1312 फट हो तब प्रतिदिन 27 लाख 60 हजार यूनिट विद्युत उत्पादन होता है। जल स्तर 1250 फुट होने पर प्रतिदिन 18 लाख यूनिट बिजली पैदा होती है। इस जलाशय का उपयोग केवल विद्युत उत्पादन, मछलीपालन तथा जल स्तर कम होने पर कृषि करने में किया जाता है। डूब की भूमि छ: क्विंटल प्रति एकड़ के मान से खाद्य का उत्पादन होता है। 115 मेगावाट बिजली का उत्पादन भी होता है। भानपुरा तहसील के चौरासीगढ़ को पार कर यह नदी राजस्थान में प्रवेश करती है। कुल 965 कि.मी. की यात्रा के बाद यह बटेश्वर (पंचनद क्षेत्र) जिला इटावा (उत्तर प्रदेश) में यमुना से मिलती है।
क्षिप्रा नदी –
क्षिप्रा अथवा सिप्रा का उल्लेख विशेष रूप से ब्रह्मपुराण व स्कन्दपुराण में मिलता है। इसके तीन अन्य नाम ज्वर, पापघ्नी व अमृत संभवा भी मिलते हैं। इसकी उत्पत्ति के संबंध में पौराणिक कथा है कि ‘यह विष्णु की उँगली से निकले खून से पैदा हुई।’ एक अन्य कथा के अनुसार इसकी उत्पत्ति ‘कामधेनु’ से हुई। स्कन्दपुराण की एक कथा के अनुसार इसकी उत्पत्ति शिव के कमण्डलु से हुई।
भौगोलिक रूप से उत्तर वाहिनी इस नदी का उद्गम विन्ध्याचल पर्वत माला की कोकरी टेकड़ी से हुआ है। यह स्थान इन्दौर से 11 कि.मी. उत्तर पश्चिम में स्थित है। यहाँ से यह उज्जैन-रतलाम जिले में बहती है। यह नदी 120 कि.मी. यात्रा कर आलोट तहसील के सपावरा (जिला रतलाम) नामक ग्राम के पास चम्बल नदी में मिलती है। यह स्थान मन्दसौर जिले की सीतामऊ के एकलगढ़ गाँव के दक्षिण में दूसरे तट पर स्थित है। इस प्रकार इस नदी का संगम मन्दसौर जिले की सीमा के करीब होता है।
छोटी काली सिन्ध नदी
यह नदी देवास जिले के सिआ (SIA) ग्राम (23° 33 उत्तरी 75° 07 से पूर्व देशान्तर) से निकलकर उत्तर-पूर्व में बहती हुई तराना, महिदपुर होकर राजस्थान की ओर मुड़ती है। क्षिप्रा की तरह छोटी काली सिन्ध नदी का संगम भी मन्दसौर जिले की सीमा में होता है। यह नदी दशपुर के शासक विश्ववर्मन के गंगाधर अभिलेख (424-425 ई.) में गर्गरा नाम से वर्णित है। इसी के किनारे प्राचीन गंगधार नामक ग्राम बसा है। यह नदी झालावाड़ जिले की सीमा रखा बनाती है। लगभग 5 कि.मी. मन्दसौर जिले में बहने के बाद यह धानडाखेड़ा (तह. सुवासरा) के समीप चम्बल नदी में प्रवेश कर जाता है।
शिवना नदी-
यह नदी चित्तौड़गढ़ (राजस्थान) के अरनोद तहसील के कालापानी ग्राम पंचायत के शवना नामक ग्राम से निकलती है। शवना ग्राम के समीप रायपुरिया की पहाड़ियों से एकत्र जल नदी का रूप लेता है। शवना, ताम्राश्य युगीन (2500 ई.पू.) नगर है। यहाँ शैव धर्म के अनेक प्राचीन मंदिर स्थित है। शवना से निकलने के कारण यह नदी शिवना नदी कहलाती है। कोटाड़ी (राजस्थान) के समीप इसमें रोजड़ नदी का संगम होता है। यह नदी पिपलौदा (जिला रतलाम) से आती है।
पुराने मानचित्रों में इसका नाम SAU तथा SEU लिखा है। कुमार गुप्त तथा बन्धुवर्मन की मन्दसौर प्रशास्ति (473-474 ई.) में वत्त्सभट्टि ने इसका उल्लेख किया है, पर नाम नहीं दिया है। जिले का मुख्यालय मन्दसौर, इसी नदी के उत्तरी किनारे पर बसा है। इसके दक्षिणी तट पर चन्द्रपुरा ग्राम की सीमा में भगवान पशुपतिनाथ का मन्दिर बना बना है। रेतम, तुम्बड़, सोमली, गीड़ इसकी प्रमुख सहायक नदियाँ है। आवागमन हेतु इस नदी पर सड़क तथा रेल्वे पुल मन्दसौर में बने हैं। इनमें रेल्वे पुल लम्बा है। सड़क मार्ग पर ब्रिटिश काल का पुल बना हुआ था। शिवना जब उफान पर होती थी तो आवागमन रूक जाता था। इस कठिनाई से छुटकारा पाने के लिए पण्डित श्यामाचरण शुक्ल, मुख्यमंत्री म.प्र. शासन (26-03-1969 : 28-01-1972) ने 26 जनवरी 1970 को नई बड़ी पुलिया का शिलान्यास किया। दिनांक 22 अप्रेल 1971 को पुल निमार्ण कार्य की शुरूवात हुई। एक वर्ष, दो माह बारह दिन (4-9-1972) में पुल बनकर तैयार हुआ। 800 फीट लम्बे इस पुल के निर्माण में 17.59 लाख रूपये खर्च हुए। संयोजक मार्ग की लागत 8.41 लाख रूपये आई। दिनांक 12 जुलाई 1973 को श्री टुमनलाल टेभरे (लोक निर्माण मंत्री, म.प्र. शासन) ने इसका उद्घाटन किया। वर्तमान में इस पुल पर से गुजरने वाले राजमार्ग का नाम स्व. श्री भँवरलाल नाहटा की स्मृति में किया गया है।
रेतम नदी-
यह नदी चित्तौड़गढ़ जिले के बसाढ़ नामक ग्राम से निकलती है। यह ग्राम मन्दसौर – प्रतापगढ़ मार्ग पर मन्दसौर से पश्चिम में 27 किे.मी. दूर स्थित है। इसी नदी पर गाडगिल सागर बांध का निर्माण किया गया है। यह नदी कोई 40 कि.मी. तय करके सुण्डी (त. मल्हारगढ़) नामक गाँव के समीप गाँधी सागर जलाशय में मिल जाती है। यह नदी पश्चिम में राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले व उत्तर में मध्य प्रदेश के नीमच जिले से सीमा रेखा बनाती है। इस नदी के किनारे चल्दू, मांगरोल, आंत्रीमाता जी जैसी प्राचीन बस्तियाँ बसी है। इडर नाला इसमें मिलने वाला सबसे बड़ा स्त्रोत है। यह मालाखेड़ा पहाड़ी (550 मीटर) से निकलता है।
तुम्बड़ नदी –
यह नदी मन्दसौर तहसील के लामगरा तालाब से निकलती है। कोई 30 कि.मी. की दूरी तय करके यह पीथाखेड़ी (त. मन्दसौर) के समीप चम्बल नदी में मिल जाती है। इसके किनारे मढ़ं (अफजलपुर) खडेरिया मारू व पाड़लिया मारू जैसी ऐतिहासिक बस्तियाँ बसी है।
गीड़ नदी –
यह सीतामऊ तहसील के ग्राम सूरखेड़ा के कांकड़ से निकलती है। इसके तट पर कोटेश्वर महादेव नामक धार्मिक व प्राकृतिक स्थल है। रणायरा (तह. सीतामऊ) के समीप यह शिवना नदी में मिल जाती है।
सूमली नदी –
मन्दसौर तहसील के दक्षिण में खोडाना के समीप से निकलती है। सेमलिया हीरा, फतेहगढ़ होती हुई यह नदी दमदम (तह. मन्दसौर) के समीप शिवना नदी में मिल जाती है।
अंसर नदी –
शामगढ़ के समीप ग्राम जमुनिया (तह. सुवासरा) के कांकड़ से निकलकर गरोठ के पश्चिम से गुजरती है। कंथारिया होकर भानपुरा तहसील में प्रवेश करती है। ग्राम रेहला के समीप गांधी सागर जलाशय में मिल जाती है।
रेवा नदी –
यह नदी कोटड़ी से निकलती है। भानपुरा इसी नदी के तट पर बसा है। यह नदी धुंवाखेड़ी होकर राजस्थान के झालावाड़ जिले के ताल गाँव में आहू नदी में मिल जाती है। धुवाखेड़ी के समीप समेली नामक स्थान पर दुधाखेड़ी से निकलने वाली रूपा नदी से इसका संगम होता है।
अवना नदी –
यह नदी बोतलगंज के समीप पहाड़ी भाग से निकलती है। आँतरी खुर्द के समीप गांधी सागर जलाशय में प्रवेश कर जाती है।
हिंगोरिया जल प्रपात –
यह जल प्रपात कछलिया गाँव (तह. गरोठ) के समीप अंदर नदी पर बनता है। लगभग 5 मीटर ऊँचे इस जल प्रपात का निर्माण तेज वर्षा के दौरान होता है।
ताखाजी प्रपात –
यह जल प्रपात ताखाजी (तह. भानपुरा) नामक स्थान पर कोई 30 मीटर ऊँचा बनता है। नीचे एक विशाल प्राकृतिक कुण्ड है। इसी कुण्ड से ताखली नदी निकलती है। हिंगलाजगढ़ दुर्ग इसी नदी के किनारे है। यह नदी हरिगढ़ होते हुए राजस्थान में बड़ी कालीसिन्ध नदी मिल जाती है। यह जल प्रपात लगभग बारहों मास चलता रहता है। इसके सिवाय कथीरिया व बड़ा महादेव के जल प्रपात बर्षा काल में दर्शनिय है।