
वर्तमान में वर्ष 2017 के अन्त में प्रवेश कर 2018 में प्रवेश कर अहं मुकाम बनाते जा रहे है वे है – पहला मंदसौर में मेडिकल कॉलेज की स्थापना और दूसरा तेलिया तालाब। माननीय मुख्यमंत्री श्री शिवराजसिंहजी की घोषणा के बावजूद मंदसौर में मेडिकल कॉलेज की स्थापना नहीं होने से मंदसौर मिशन द्वारा 43 दिनों से धरना निरन्तर जारी है।
जहां तक तेलिया तालाब का प्रश्न है यह वही तालाब है जब मैं 59 वर्ष पूर्व 1959 में 16 वर्ष की उम्र में मंदसौर हायर सेकेण्डरी स्कूल में पढ़ने आया था। बचपन से तैरने का शोक होने से सवेरे उठते ही इस तालाब में तैरने निकल जाता था। काफी दूर तक तैरने जाता था तब इस तालाब की सीमा में न तो कोई कॉलोनी थी न कोई भवन न कोई रिसोर्ट था, रामटेकरी कॉलोनी, पानी की टंकी, यशोधर्मन क्लब लम्बे अर्से बाद बने तब रेवास देवड़ा मार्ग भी नहीं बना था, उस समय तालाब की पाल पर होकर बुगलिया, गुजरदा, रेवास देवड़ा आदि ग्रामवासी नीचे कच्चे रास्ते से गंतव्य की ओर जाते थे। उस समय पाल पर खड़े होकर जब तालाब की उत्तर दिशा में निगाह जाती तब वर्तमान में जहां फार्मेसी कॉलेज है उससे आगे तक तालाब लबालब भरा हुआ पश्चिमी उत्तरी हवा से ऊँंची-ऊँची लहरों से किनारों से अठखेलियां खेलता हुआ सहज ही नगरवासीयों को घण्टों अपनी ओर आकर्षित करता रहता था। तालाब का झरना जिसके दर्शन अब इन्द्रदेव की कृपा, सौभाग्य से अथवा पूर्व जन्मों के पुण्य प्रताप से बरसात में ऊंगलियों पर गिनने लायक कुछ दिनों के लिये ही झरता है उन दिनों तालाब में मिलने वाले नालों से जिन्हें अवरूद्ध कर दिया गया है इतना पानी आता था कि तालाब में समाता नहीं था और यह झरना कई दिनों तक 2 से 3-3 फीट की परिधि में गिरता रहता था और जब बारिश थम जाती शरद ऋतु प्रारंभ हो जाती तब इसका फाल (गिरना) धीरे-धीरे कम होते हुए जहां तक मुझे स्मरण है दिवाली तक यह गिरता रहता था। झरना बन्द हा ेने के बाद भी जहां तक तालाब में पानी भरा रहने का प्रश्न है हालांकि अगली बरसात तक पूरा तालाब तो भरा नहीं रहता परन्तु आवक इतनी हो जाती थी कि गर्मी में खेल का मैदान बनते इसे कभी नहीं देखा जो हमारे कारण इसकी बदनसीबी कहिये कि इसके विशाल स्वरूप को बोना कर दिया गया है। तालाब के संबंध में यहां विशेष उल्लेख करना चाहूंगा कि यह तालाब चाहे सरकारी दस्तावेजों में तालाब अंकित क्यों न हो परन्तु उस समय प्रकृति से लगाव रखने वाले सहित्य प्रेमी स्वर्गीय मदनकुमारजी चौबे, गौलोकवासी भागवताचार्य पं. मदनलालजी जोशी आदि प्रबुद्धजन प्रसंग आने पर इसे मंदसौर ही नहीं क्षेत्र की सबसे बड़ी झील के रूप में संबोधित करते थे और इसमें कोई अतिश्योक्ति भी नहीं हैं क्योंकि इसका जो स्वरूप था वह किसी बड़ी झील जैसा ही था दूर-दूर जहां तक निगाह जाती थी, किनारों की तोड़ता हुआ जल ही जल दृष्टिगोचर होकर नेत्रों व मन को सुकून देता था। विगत वर्षाें में रामटेकरी की रामनगर और तेलिया टेंक को सीता सरोवर के नाम से न.पा. में प्रस्ताव भेजकर-रामटेकरी कार्नर पर इस नाम से बोर्ड भी लगा दिये थे।
क्या कहेंगे इसे हम विडम्बना अथवा दुर्भाग्य कि तथाकथित विकास के नाम पर सुरसा की मुख की तरह जनभावनाओं को कुचलकर प्रकृति का गला काटकर कांटी जा रही कॉलोनियां, आलीशान भवन, रिसोर्ट और इन सबके पीछे कोई जन कल्याण, नगर विकास नहीं प्रथम दृष्टया प्रत्यक्ष रूप से छुपा हुआ निजी स्वार्थ साधने की स्पर्धा, होड़ जिसका दुष्परिणाम यह हुआ कि आज जिस तालाब की पाल पर खड़े होकर उत्तर की ओर दृष्टि करने पर मीठे जल का लहलहाता सरोवर दिखता था वहां रेत-सीमेंट के बने आलीशन भवनों की लम्बी श्रृंखलाओं की एक ऐसी मोटी दिवार दिखाई देती है जिसे नगर विकास तो नहीं कहा जा सकता, प्राणी मात्र के लिये प्रमुख आवश्यक शुद्ध-स्वच्छ जल का प्रमुख स्त्रोत सिमट जाने से इसे विनाश नहीं तो और क्या कहा जायेगा ?
तेलिया तालाब को पुनः अपनी सम्मानीय प्रतिष्ठा दिलाने में जहां आमजन तो लम्बे समय बाद जब सांप निकल गया और लकीर पीटने की तरह कॉलोनियों-भवन एक दिन 1 माह में तो बने नहीं उस समय सोते रहे, अंगड़ाई लेकर देर से ही सही परन्तु जब जागे तब सवेरा जाग उठे है। राजनैतिक दल कांगेस-शिवसेना भी कूद पड़ी है। लोकतंत्र में अपनी बात कहने का सबको अधिकार है और जिसमें आमजन का हित जुड़ा हो तब राजनीति से उपर उठकर सबको आगे आना ही चाहिये परन्तु यक्ष प्रश्न तो फिर भी अनुत्तरीत रहेगा कि आका रूपी आम जनता और विशेषकर मीडिया के भागीरथी के प्रयास ने तालाब मुद्दा रूपी इस जिन्न को बाहर तो निकाल दिया है परन्तु क्या यह जिन्न 2018 के विधानसभा और 2019 के लोकसभा चुनाव तक ही बाहर रहेगा और फिर अन्य मुद्दों की तरह वापस बोतल में बन्द होकर गायब हो जायेगा अथवा कार्यसिद्धी नहीं होने तक बाहर ही रहेगा ?