मन्दसौर दर्शनीय स्थान –
मन्दसौर जिले में पुरातत्व एवं इतिहास की दृष्टि से अनेक महत्वपूर्ण स्थान है। इनमें भानपुरा तहसील के शैलचित्र है। ये शैलचित्र सीताखर्डी, चिब्बरनाला, चतुर्भुजनाथ आदि स्थानों पर मिलते हैं। इन चित्रों में शिकार, जंगली जानवर, नृत्य आदि गतिविधियों का सजीव चित्रण है।
धर्मराजेशवर, खेजड़ियाभूप, पोलाडूँगर, घसोई, धानखेड़ी में बौद्ध धर्म से सम्बन्धित शैलोत्कीर्ण विहार, चैत्य, स्तूप व मन्दिर विद्यमान है। मन्दसौर का प्राचीन नाम दशपुर था जिसका प्राचीनतम उल्लेख अवलेश्वर के स्तम्भ में मिलता है। यह दशपुर गुप्त काल में लौलिकर सम्राटों की राजधानी रहा। यहाँ के सम्राट प्रकाशधर्मा ने हूण शासक तोरमाण को पराजित किया। सम्राट यशोधर्मन ने तोरमाण के पुत्र मिहिरकुल को पराजित कर कीर्ति स्तम्भों की स्थापना की थी।
जिले में नीमथूर, कँवला, सन्धारा, मोड़ी, अन्त्रालिया, कुणा आदि स्थानों पर प्राचीन मन्दिर है। हिंगलाजगढ़ का प्रख्यात किला इसी जिले में है। यहाँ से प्राप्त प्रतिमाएँ विश्वभर में आयोजित भारत महोत्सवों में भारतीय कला का बखान करती है।
यहाँ जैन धर्म की भी अनेक दुर्लभ प्रतिमाएँ मिलती है। परासली, पार्श्वनाथ नीमथूर, सन्धारा आदि में अद्भुत मन्दिर है। मुस्लिम संस्कृति सम्बन्धित मन्दसौर का किला, खिलचीपुरा का बुर्ज, मन्दसौर की जामा मस्जिद, खड़ावदा की मलिक बहरी की बावड़ी प्रशस्ति भारतीय इतिहास की धरोहर है। मराठा कालीन भित्तिचित्र भापनुरा, मन्दसौर आदि में है।
यशवंतराव होलकर प्रथम की छत्री एवं छत्री संग्रहालय भानपुरा एवं सम्राट यशोधर्मन संग्रहालय मन्दसौर इस क्षेत्र की प्रतिमाओं के सुन्दर संग्रहालय है।
शिवना नदि के दक्षिणी तट पर स्थित भगवान पशुपतिनाथ महादेव की अष्टमुखी प्रतिमा प्राचीन कला का अद्भुत एवं विश्व में एक मात्र है। आज देश के लाखों पर्यटक, श्रद्धालु इसके दर्शन कर अपने आपको धन्य मानते हैं। गांधीसागर बांध एंव जलाशय आधुनिक भारत की अभियांत्रिक कला का उदाहरण है।