
चित्तौड़गढ सॆ उदयपुर की ओर राष्ट्रीय राजमार्ग 76 पर 28 कि. मी. दूरी (इस राजमार्ग पर उदयपुर से चित्तौड़गढ की ओर 82 कि. मी.) पर स्थित प्रसिद्ध श्री सांवलिया जी प्राकट्य स्थल मंदिर प्रतिवर्ष अपनी सुन्दरता एवम वैशिष्ट्य के कारण हजारों यात्रियों को बरबस आकर्षित करता है। दर्शन हेतु आप किसी भी समय यहाँ आयें, आपको दर्शनार्थियों की भीड़ ही मिलेगी।
श्री सांवलिया जी की प्रतिमाओं का प्रकटीकरण :- सन 1840 में तत्कालीन मेवाड राज्य के समय उदयपुर से चित्तोड़ जाने के लिए बनने वाली कच्ची सड़क के निर्माण में बागुन्ड गाँव में बाधा बन रहे बबूल के बृक्ष को काटकर खोदने पर वहा से भगवान् कृष्ण की सांवलिया स्वरुप तीन प्रतिमाएं निकली।
किवंदती के अनुसार ये मुर्तिया नागा साधुओं द्वारा अभिमंत्रित थी जिनको आक्रमणकारियों के डर से यहाँ जमीन में छिपा दिया गया। कालान्तर में वहा बबूल का एक वृक्ष बना। वृक्ष की जड़ निकालते समय वहां भूगर्भ में छिपे श्री सांवलियाजी की सुंदर एवम मनमोहक तीन प्रतिमाएं एक साथ देखकर मजदूर व स्थानीय व्यक्ति बड़े आनंदित हुए।
भादसोड़ा में सुथार जाति के अत्यंत ही प्रसिद्ध गृहस्थ संत पुराजी भगत रहते थे। उनके निर्देशन में इन मूर्तियों की सार संभाल की गयी तथा उन्हें सुरक्षित रखा गया। एक मूर्ति भादसोड़ा गाँव ले जाई गयी जहाँ भींडर ठिकाने की और से भगतजी के निर्देशन में सांवलिया जी का मंदिर बनवाया गया। दूसरी मूर्ति मण्डफिया गाँव ले जाई गयी वहा भी सांवलियाजी मंदिर बना कालांतर में जिसकी ख्याति भी दूर-दूर तक फेली। आज भी वहा दूर-दूर से हजारों यात्री प्रति वर्ष दर्शन करने आते हैं। श्री सांवलिया जी प्राकट्य स्थल इस स्थान के पास ही भादसोड़ा गाँव है जिसका 1000 साल से भी पुराना इतिहास है। अजमेर व देहली के शासक वीर पृथ्वीराज चौहान की बहन पृथा का विवाह चित्तोड़ के राणा समर सिंह के साथ हुआ था। विवाह के बाद पृथा के साथ दासियाँ व चारण सरदार चित्तोड़ आ गए जिन्हें राणा समरसिंह ने 12 गाँव जागीर में दिए थे। इन गावों में भादसोड़ा गाँव भी शामिल था।
प्राकट्य स्थल मंदिर का निर्माण :- निर्माणाधीन मंदिर – प्रथम चरण संयोग की बात है कि भादसोड़ा एवं मण्डफिया में मंदिर बनने के बाद भी प्रतिमाओं का मूल उदगम स्थान अविकसित ही रहा। इस जगह एक चबूतरे पर 5’x4′ आकर का नन्हा सा मंदिर वर्षों तक अनचीन्हा रहा। 1961 में श्री सांवलिया जी प्रेरणा पाकर श्री मोतीलालजी मेहता, अपने सहयोगियों स्व. सर्वश्री दीपचंदजी तलेसरा, श्री डाडमचन्दजी चोरडिया, श्री नारायणजी सोनी व श्री मिट्ठालालजी ओझा के साथ इस कार्य में पूरी तरह लग गए। वह समय आर्थिक दृष्टि से बहुत कठिनाई का था। लोगों को रूपया आसानी से उपलब्ध नहीं होता था पर मेहताजी ने हार नहीं मानी। उस समय जिससे जो बन पड़ा उससे वह लिया गया, पत्थर विक्रेताओं से पत्थर दान में लिए, छत के लिए पट्टीवालों से पट्टीया लीं।
दान में किसी ने अपनी बैलगाडी से मंदिर निर्माण सामग्री ढोई। मजदूरों व कारीगरों ने भी यथा संभव अपना श्रम व कौशल दान में दिया। बंजारा समाज ने छोटी सराय हेतु पैसा दिया। आपसी समझोते से यदि मेहताजी कोई सामाजिक या पारिवारिक झगडा निपटाते तो उभय पक्षों से मंदिर निर्माण हेतु भंडार में पैसा अवश्य डलवाते।
शनै-शनै प्राकट्य स्थल मंदिर आकर लेने लगा. भविष्य को ध्यान में रखते हुए मंदिर के धरातल को 12 फुट ऊँचा बनाया गया। 1978 में विशाल जनसमूह की उपस्थिति में मंदिर पर ध्वजारोहण किया गया।
निर्माणाधीन मंदिर – द्वितीय चरण1961 से मंदिर के निर्माण, विस्तार व सोंदर्यकरण का जो कार्य शुरू हुआ है,वह आज तक चालू है। राष्ट्रीय राजमार्ग पर इस स्थल पर अब एक अत्यंत ही नयनाभिराम एवं विशाल मंदिर बन चूका है। 36 फुट ऊँचा एक विशाल शिखर बनाया गया है जिस पर फरवरी, 2011 में स्वर्णजडित कलश व ध्वजारोहण किया गया।
मंदिर की छत पर सुन्दर चित्रकारी, बरामदों में विभिन्न देवी-देवताओं से की नयनाभिराम मूर्तियाँ लगाई जा रही है। बरामदों की दीवारों पर भी सुन्दर चित्रकारी का कार्य करवाया जा रहा है। मंदिर में नयनाभिराम जड़ाई (In-Lay) का काम किया गया है। यह अप्रैल २०१३ तक पूरा होना प्रस्तावित है।
देवझूलनी एकादशी मेला :- 1961 से मंदिर के शिलान्यास पूर्व से ही इस पवित्र स्थल पर देवझूलनी एकादशी पर विशाल मेले का आयोजन किया गया। यह व्यवस्था आज भी बनी हुयी है। प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ल पक्ष की दशमी, एकादशी व द्वादशी को 3 दिवसीय विशाल मेले का आयोजन किया जाता है।
एकादशी के दिन भादसोड़ा व बागुंड से भगवान के बाल रूप की शोभा यात्रा निकली जाती है, इसमे हजारों धर्मप्रेमी उल्लास के साथ भाग लेते है। दोनों शोभायात्राएं प्राकट्य स्थल मंदिर पहुँचने के बाद एक विशाल जुलुस में परिवर्तित हो जाती है। फिर यहाँ पर भगवान को स्नान कराया जाता है।
मंडफिया सांवलिया सेठ मंदिर (मुख्य मंदिर)- Mandpiya Sanwaliyaji
प्राचीन मंदिर भादसौड़ा स्थित सांवलिया सेठ मंदिर- Bhadsoda Sanwaliyaji

श्री सांवलिया सेठ मंदिर की सुंदर कथा
सांवलिया सेठ जी के चमत्कार
प्रभु श्री सांवलिया सेठ की महिमा और उनके चमत्कारों का बखान दूर-दूर तक प्रशिद्ध है, यू तो सांवलिया सेठ के कई किस्से श्रद्धालओ में प्रचलित है पर उनमे भक्त के घर पुलिस का छापा पड़ने पर अफीम का गुड़ बन जाने, पूर्व मुख्यमंत्री राजस्थान के भगवान के दर्शन की इच्छा का प्रयास करने पर समय से पहले पट नहीं खुलने एवं समय होने पर उसी चाबी से पट खुल जाने सहित भगवन द्वारा भक्तो के संकट हरने के कई किस्से भक्तो द्वारा सुनाये जाते है। बताते है की अनकूट (भगवन को चढ़ाये जाने वाला भोग) पर मालपुवे बनाने के दौरान श्रद्धालु अधिक आ जाने से घी कम पड़ गया, भक्त भोलीराम ने आस-पास पता किया, लेकिन कही घी नहीं मिला। तब सांवलिया सेठ के दरबार मे गुहार लगाई, इसी दौरान एक वृद्ध पुरुष वहाँ पंहुचा और उसने पास ही स्थित कुवे में से पानी निकालकर मालपुवे बनाने को कहा। साथ ही निर्देश दिया की जब घी मिल जाये तो उसमे वापस डाल देना। चमत्कार यह था की पानी कढाहे मे पड़ते ही घी बन गया और सानंद अनकूट संपन्न हुआ। बाद मे उस वृद्ध पुरुष को तलाशा गया लेकिन वह कही नहीं मिला और उसके बताये अनुसार घी को कुवे में डाल दिया गया। यह कुई आज भी मंदिर परिसर में विधमान है।
सांवलिया सेठ के दरबार में एक नीमच निवासी किशन पंहुचा वह अपनी मनोकामना पूर्ण हो जाने पर संकल्प के अनुसार ब्लेड से अपनी जिव्हा काटकर श्री सांवलिया सेठ के चरणों में चढ़ा दी। खून बहने पर मंदिर के कर्मचारी एकत्र हुए और तुरंत उसकी जिव्हा एक पॉलीथिन में रखकर उसे चिकत्सालय ले जाने का उपक्रम किया। चिकित्सको के प्राथमिक उपचार के पश्चात उसे अहमदाबाद रेफर किया गया व रात्रि होने के कारण भक्त को धर्मशाला के कमरा नं. 59 में रखा गया। सुबह अहमदाबाद ले जाने के लिए जब उठाया गया तो अलौकिक चमत्कार देखने को मिला, की भक्त किशन की पूरी जिव्हा मौजूद थी और पॉलीथिन में कटी हुई जिव्हा पास ही रखी हुई थी। यह देख कर उपस्थित भक्त सांवलिया सेठ की जय-जयकार करने लगे।
॥ जय श्री सांवलिया सेठ ॥
प्रतिवर्ष मंदिर में सभी प्रमुख त्यौहार एवम उत्सव मनाये जाते है। ये इस प्रकार है :-
» महा-शिवरात्रि
» होली एवं फूलडोल उत्सव
» नवरात्री
» राम-नवमी
» हनुमान जयंती
» हरियाली अमावस्या
» जन्माष्टमी
» गणेश-चतुर्थी
» जलझुलनी एकादशी (प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ल पक्ष की दशमी, एकादशी व द्वादशी को 3 दिवसीय विशाल मेला )
» दीपावली एवं अन्नकूट
धर्मशाला :- मंदिर में दर्शन के लिए आने वाले यात्री एवम श्रद्धालुओं के लिए एक धर्मशाला बनायीं गयी है।
इस धर्मशाला में :- धरातल पर – 14 कमरे, प्रथम तल – 15 कमरे है।
प्रथम तल पर 9 कमरे वातानुकूलित(AC) है तथा इन सभी कमरों में toilet-bathroom की सुविधा है। अन्य बड़े आयोजनों के लिए 60×30 फीट का एक सभागार है।
Call : +91-01470-245493
Manager: +91-89630-26995, +91-77375-19547
वर्तमान में कमरों का प्रतिदिन का किराया निम्न प्रकार है :-
वातानुकूलित (AC) कमरा: 300 रूपये
सामान्य कमरा: 150 रूपये
धरातल पर कमरा : 50 रूपये एवं 100 रूपये
सभागार : 5000 रूपये
किसी भी प्रकार के कमरों की अग्रिम बुकिंग प्रबंधक से संपर्क करके की जा सकती है। प्रबंधक के फ़ोन नंबर इस प्रकार है।
89630-26995, 77375-19547
कैसे पहुँचे साँवलिया सेठ ? – How to Reach Sanwaliyaji
1. कार,बस के द्वारा सड़क के रास्ते से: चित्तौड़गढ़ से सांवलिया सेठ में मंदिर मात्र 35 किमी पर दूर है| चित्तौड़गढ़ जिला मुख्यालय पर राजस्थान राज्य पथ परिवहन निगम का आगार (डिपो) है जहा तक राजस्थान के लगभग हर ज़िले से और सीमावर्ती राज्यों जैसे मध्य-प्रदेश, गुजरात, उत्तर-प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली सें बसे आती-जाती है|निजी ट्रेवल्स बसें भी राजस्थान और सीमावर्ती राज्यों जैसे मध्य-प्रदेश, गुजरात, उत्तर-प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली सें आती-जाती है।
यात्रियों की सुविधा के लिए कुछ संभावित मार्गों की जानकारी नीचे दी गयी है।
i) श्रीनाथ जी से आने वाले श्रद्धालु मावली-डबोक एयरपोर्ट या मावली-भटेवर होते हुए मंगलवाड़ से भादसोड़ा चौराहा पहुँच सकते है। श्रीनाथ जी से आने वाले श्रद्धालु मावली-फतहनगर-कपासन होते हुए भादसौड़ा चौराहा पहुँच सकते है।
ii) मध्य-प्रदेश,उत्तर-प्रदेश से आने वाले श्रद्धालु कोटा के रास्ते चित्तौड़गढ़ पहुँच सकते है।
iii) इंदौर, उज्जैन, रतलाम, मंदसौर, बांसवाड़ा, प्रतापगढ़, नीमच की तरफ से आने वाले श्रद्धालु निम्बाहेड़ा पहुंच सकते है| निम्बाहेड़ा से मंगलवाड़-उदयपुर हाई-वे से चिकारड़ा होते हुए साँवलिया सेठ पहुंच सकते है।
iv) मुम्बई, सूरत, अहमदाबाद की तरफ से आने वाले श्रद्धालु पहले उदयपुर पहुंचे फिर उदयपुर से मंगलवाड़ 4 लेन हाई-वे होते हुए भादसोड़ा चौराहा पहुँच सकते है।
v) सिरोही, माउंट आबू की तरफ से आने वाले श्रद्धालु उदयपुर-मंगलवाड़ होते हुए भादसोड़ा चौराहा पहुँच सकते है।
vi) जोधपुर, पाली, की तरफ से आने वाले श्रद्धालु राजसमंद, कपासन होते हुए भादसोड़ा चौराहा पहुँच सकते है।
vii) दिल्ली, हरियाणा, आगरा, जयपुर, अजमेर भीलवाड़ा के रास्ते से आने वाले श्रद्धालु चित्तौड़गढ़ पहुंचे।
2. रेल मार्ग से : देश के अनेक राज्यों से चित्तौड़गढ़ के लिए रेल सुविधा उपलब्ध है| चित्तौड़गढ़ का रेलवे स्टेशन कोड COR है।
DAILY DARSHAN & SPECIFIC FESTIVALS / CELEBRATIONS
दोपहर में 12 बजे से 2:30 बजे तक शयन समय होने से दर्शन बंद रहते है अन्यथा सुबह 5 बजे मंदिर खुलने के बाद रात्रि 11 बजे तक दर्शन के लिए खुला रहता है।
क्र. स. | समय | विवरण |
1. | 5.30 AM | मंगला आरती |
2. | 10.00 AM TO 11.15 AM | राजभोग आरती और प्रसाद वितरण |
3. | 12.00 PM TO 2.30 PM | शयन समय |
4. | FROM 2.30 P.M | आरती, फलाहार और प्रसाद वितरण |
5. | 8.00 PM TO 9.15 PM | संध्या आरती |
6. | 9.15 PM TO 11.00 PM | भजन और कीर्तन |